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” सफ़र… ”[व्यंग्य]

''आवारा कलम से.... ''
''आवारा कलम से.... ''
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रात बहुत गुज़र गयी है पर अभी तक आँखों के दर पर नींद ने दस्तक नहीं दी है ! सोच रहा हूँ की कुछ लिख़ा जाये ! अब सवाल ये पैदा होता है की लिख़ा क्या जाये ? इन बुद्धजीवियो ने लिखने के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा ! खैर आप सब छोड़िये! ये मेरी दिक्कत है और मैं इससे निपट लूँगा !
रात के ३ बज के १५ मिनट हुए है ! इस वक़्त आप में से अधिकतर सभी लोग अपनी नींद पका रहे होंगे ! उम्मीद है की जैनेन्द्र साहब अभी तक जाग रहे होंगे ! और मैं रोज़ की तरह मालवीयनगर में अपने फ्लैट की बालकोनी में आके खड़ा हो गया हूँ ! पिछले १५ मिनट से यही सोच रहा हूँ की क्या लिख़ा जाये ?
और आखिरकार इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की आज एक व्यंग्य लिख़ा जाये !
शुरुआत करता हूँ एक सवाल से की क्या आपने कभी रेल का सफ़र किया है ?
हालाँकि मैं जानता हूँ की आप सभी ने किया है पर फिर भी पूछ लेता हूँ !
सोचिये की आप तपती हुई दोपहर में देल्ही से मुज़फ्फरनगर जाने वाली वाली रेल के इंतजार में नयी दिल्ली के प्लेटफार्म नंबर ११ पर बैठे हुए है ! ये बताता चलू की दिल्ली से मुजफ्फरनगर सौ या सवा सौ किलोमीटर दूर है जो की पश्चिमी उत्तरप्रदेश का हिस्सा है !
तभी आपके कानो में एक चिरपरिचित सी आवाज़ गूंजती है -चाय! चाय!
आपकी आँखों के सामने से एक ठेलेवाला गुजरता है जो की केले बेच रहा है !
और उसके ठेले के ऊपर पीले रंग के बोर्ड पर काले अक्षरों में लिख़ा है ”कृपया छिलके कूड़ेदान में ही डाले ”!
कुछ लोग प्लेटफार्म पर ही पसरे पड़े है वो भी ताज़े अखबार पर !
कुछ नौजवान मजदूर छोकरे आपने लाल , पीले से मोबाइल में तेज़ आवाज़ में गाना बजाते है ” परदेसी परदेसी जाना नहीं ”!
कुछ आदमी पानी की टंकी पर पहले मैं , पहले मैं करते हुए पानी पी रहे है ! इसी धक्कामुक्की में किसी की शर्ट भीग जाती है तो किसी की पैंट ! परन्तु वे ही आदमी, जब एक खूबसूरत सी औरत अपनी पानी की बोतल भरने के लिए उनसे कहती है ,बेहद सभ्य हो जाते है !
तभी रेल के आने का संकेत होता है, कुछ तजुर्बेकार लोग पहले से ही प्लेटफ़ॉर्म पर आगे की और चलना शुरू कर देते है, उन्हें पता है की रेल कहाँ आकर रुकेगी ! उनकी देखा देखी और भी कुछ लोग उनके साथ हो जाते है !
खैर जैसे तैसे रेल प्लेटफ़ॉर्म पर आके खड़ी होती है ! भीड़ को देखकर , आपका तो पता नहीं पर मुझे जरूर ऐसा लगता है की अगर गलती से भी कोई गर्भवती महिला इस रेल में चढ़ गयी तो उसे डिलिविरी के लिए किसी भी अस्पताल की जरूरत नही होगी ! जो कुछ भी होगा मौका-ऐ -वारदात पे ही होगा !
हालाँकि भीड़ तो रेल में बहुत है पर फिर भी आप कही न कही अपना आधा हिस्सा तो टिका ही देते है ! फिर रेल के रुकते रुकाते यात्रियों के चढ़ने और उतरने के बीच आप किसी सीट में अच्छी तरह से फिट हो जाते है !फिर भी आप की तमन्ना रहती है की खिड़की वाली सीट तक जैसे तैसे पहुँच जाये ! और अंत तक आप वहा पहुँच ही जाते है ! बड़े खुश होते है , जब खिड़की से बाहर गावो को गुजरता हुआ देखते है ! किसी गाव के शुरू होने से पहले एक सरकारी स्कूल दिखाई देता है , जिसके मैदान में कुछ बच्चे खेल रहे है ! दीवारों पर लिख़ा हुआ दिखाई देता है ” हासमी दवाखाना , बुढ़ाना रोड , मुजफ्फरनगर ”!
” गुप्त रोगी मिले , हर शुक्रवार, हकीम इकबाल ”!
” बे औलाद मिले ”!
इसके ठीक विपरीत जब रेल एक शहर में घुसती है तो दिखाई देता है एक बेहद गन्दा सा नाला ! जिसमे सारे शहर की गंदगी गिराई जाती है !
तभी थोड़ी देर बाद आपको खिड़की वाली सीट से नफरत सी होने लगती है
, क्यूंकि सारी धूप आपके ऊपर ही आ रही होती है ! अब तक जिस खिड़की की सलाखों को आप पकड़ कर बाहर झाँक रहे थे , वो भी आपको आपको दहकती हुई सी लगती है ! अब आपको पानी की जरूरत महसूस होती है , किसी स्टेशन पर आप सरकारी नल देखकर उतरते है, पर जैसे ही आप नल का हत्था अपने हाथ में थामते है ,तीन-चार लोग पानी पीने के लिए झुके तैयार दिखाई देते है ! धीरे धीरे आदमियों की संख्या बढ़ती जाती है ! और आप का काम सिर्फ नल चलाना रह जाता है , जैसे आपको १५० रुपये मजदूरी पर नल चलाने के लिए नियुक्त किया गया हो ! बीच बीच में तो २ लीटर वाली पेप्सी की बोतले भी भरी जाती है ! आप गुस्से में नल चलाना छोड़कर , पानी पीने के लिए भीड़ में शामिल होते है ! पर जैसे ही आपकी बारी आती है , रेल की सीटी सुनाई देती है और वो आदमी जिसने अभी अभी हत्था थामा था वो आपसे पहले रेल की और लपकता है और बाद में आप भी !
इधर तो आप प्यासे रह जाते है , और उधर आपकी सीट किसी महिला द्वारा हथिया ली जाती है , जिसे आप चाहकर भी कुछ नहीं कह सकते !
फिर आप ये सोचकर संतोष कर लेते है की” यार ! अभी तो अगले स्टेशन पर उतरना ही है !”
तब आप अपना बैग , जो अपने बड़े सलीके से सीट के नीचे रखा था ,दबी और कुचली हालत में पाते है ! वो भी उस जगह नहीं मिलता जहां आपने रखा था !
आप अगले स्टेशन पर उतरने के लिए दरवाज़े तक पहुँचते है , जिसमे से चढ़ने के लिए पहले ही कई लोग खड़े है ! आप लाख कहते है पर कोई आपको उतरने नही देता ,सब चढ़ते जाते है ! तभी आपके पीछे से एक लड़की की आवाज़ आती है ” अरे भैय्या! पहले उतरने तो दो !” लड़की की आवाज़ का वाकई असर होता है और आप बदकिस्मती से ट्रेन में से जिंदा उतर जाते है !!

नितीश सैनी

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