''आवारा कलम से.... ''
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मैं मिट्टी का ,
मेरा जिस्म मिट्टी का !
क्यूँ खीचे भला मुझे ,
ये हुस्न मिट्टी का !
वो टूटती ,चिटकती रात
मेरा ख्वाब मिट्टी का !
भूला बिसरा कोई भीड़ में ,
मेरा नाम मिट्टी का !
बुज़दिल वो मेरा अश्क ,
मेरा चेहरा मिट्टी का !
बदन से चिपका पड़ा ,
मेरा गहना मिट्टी का !
वाह! क्या ख़ुश्बू मेरी हथेली की ,
मेरी साँस मिट्टी की ,
मेरा हाथ मिट्टी का !
बनती बिगड़ती वो मंज़िल मेरी,
एक तू ही मेरा हमसफ़र ,
मेरा साया मिट्टी का !
बड़ी तंग हैं ये ,रहगुजर तेरी ,
मेरे पाँव मिट्टी के ,
मेरा कदम मिट्टी का !
”आवारा” हूँ , मालिक हूँ अपने मिजाज़ का ,
मेरा दिल भी मिट्टी का ,
मेरा सितम मिट्टी का !!
नितीश सैनी
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