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”मेरे हाथो से कलम तो ना छीनो… !”

''आवारा कलम से.... ''
''आवारा कलम से.... ''
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जनाब मुझसे मेरा हुनर तो ना छीनो,
मेरे हाथो से कलम तो ना छीनो !

चाहो तो मेरा आखिरी कतरा-ए-लहू तक लेलो ,
पर मुझसे मेरे ये ग़म तो ना छीनो!

मेरे हाथो से कलम तो ना छीनो !

बाँट तो चुके हो ज़मीन को कई हिस्सों में ,
अब मेरे सर से फ़लक तो ना छीनो !

मेरे हाथो से कलम तो ना छीनो !

ये और बात है की ”नितीश” सजदे नही करता ,
फिर भी तुम उससे दैरोहरम तो न छीनो!!

मेरे हाथो से कलम तो ना छीनो !

भले मेरी गुफ्तार ,मेरी शिफत न हो ,
पर मेरा लहजा-ऐ-गुफ्तगू तो न छीनो !!

मेरे हाथो से कलम तो ना छीनो !

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