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”तेरे बिना माँ…”

''आवारा कलम से.... ''
''आवारा कलम से.... ''
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१. माँ तेरे बिना जी नहीं लगता है , तेरी गोदी मे खो जाऊ दिल करता है!

२.साथ रहती है तू तो लड़ लेता हूँ सबसे , जब दूर रहती है , तो डर लगता है!

३. जाने कितने है निशान जख्मो के इस जिस्म पर,

पर जिन्दा हूँ अब तलक ,तेरी दुआओ का असर लगता है!

४. तेरे दिखाए हुए रास्तो का ही सबब है ,
जो आस्मा अब धुला धुला सा लगता है !

५. तू खिला देती थी कई रोटिया अपने नरम हाथो से,
अब ठंडा रहता है चूल्हा , पर पेट भरा सा लगता हँ!

६. तू डांटती थी बिस्तर पर फैला सामान देखकर ,

अब तू नहीं हँ तो सारा घर बिखरा सा लगता है!

७. तू जगाती थी मुझको एक नई सुबह लेकर ,
अब उठता हूँ तो रोज की तरह पुराना सवेरा लगता है!

८. जिस मंदिर मे तू सोते उठते ही जलाती थी चिराग ,
अब देखता हूँ तो वो कभी कभार ही रोशन लगता है!

९. जिस घर को तू सजाती थी बड़े जतन से,

अब वो घर चिडियों का बसेरा लगता है!

१०. तूने ही सिखाया है लड़खड़ाते हुए कदमो को चलना ,
अब भले रास्ते टेढ़े मेढ़े है , पर नितीश सीधे चलता है !

by नितीश सैनी……….

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